इज़राइल-गाजा संघर्ष का इतिहास: एक विस्तृत अवलोकन
नमस्ते दोस्तों! आज हम एक ऐसे मुद्दे पर बात करने जा रहे हैं जो दशकों से दुनिया की नज़रों में है - इज़राइल और गाजा के बीच का संघर्ष। यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और इसे समझना आसान नहीं है। पर चिंता मत करो, हम इसे बिल्कुल सरल तरीके से समझेंगे, जैसे हम कोई कहानी सुन रहे हों। तो, अपनी कुर्सी की पेटी बांध लो, क्योंकि हम इतिहास के गलियारों में गोता लगाने वाले हैं!
संघर्ष की जड़ें: विभाजन और स्थापना
गाइज़, इस पूरे मामले की शुरुआत को समझने के लिए हमें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समय में जाना होगा। उस समय, फिलिस्तीन (Palestine) ब्रिटिश शासन के अधीन था। युद्ध के बाद, दुनिया भर के यहूदियों के लिए एक घर बनाने की भावना तेज़ हो गई थी, खासकर होलोकॉस्ट के भयानक अनुभव के बाद। इसी भावना के चलते संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने 1947 में फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव रखा - एक यहूदी राज्य और एक अरब राज्य। तेल अवीव और यरूशलेम जैसे प्रमुख शहर भी इसी बंटवारे का हिस्सा थे।
यहाँ से ही असली कहानी शुरू होती है, दोस्तों। जहाँ यहूदियों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, वहीं अरब देशों और फिलिस्तीनी अरबों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। उनका मानना था कि यह उनकी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा है। 1948 में, जैसे ही ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ, इज़राइल राज्य की स्थापना की घोषणा हुई। लेकिन क्या आपको लगता है कि यह शांति से हुआ? बिलकुल नहीं! इसके तुरंत बाद, पड़ोसी अरब देशों की सेनाओं ने इज़राइल पर हमला कर दिया। इस युद्ध को 'इजरायल की स्वतंत्रता की लड़ाई' या अरबों की तरफ से 'नकबा' (तबाही) के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, इज़राइल ने न केवल अपनी सीमाओं का विस्तार किया, बल्कि हज़ारों फिलिस्तीनी भी अपने घरों से बेघर हो गए, जो आज तक शरणार्थी के रूप में जी रहे हैं। यहीं से गाजा पट्टी (Gaza Strip) का जन्म हुआ, जो मिस्र के नियंत्रण में आ गया, जबकि वेस्ट बैंक (West Bank) जॉर्डन के कब्जे में चला गया। इस विभाजन ने दोनों समुदायों के बीच अविश्वास और दुश्मनी की नींव रख दी, जो आज भी कायम है। यह शुरुआती दौर इस पूरे संघर्ष का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इसने भविष्य की सभी घटनाओं के लिए मंच तैयार कर दिया था।**
1967 का युद्ध और गाजा का इजरायली कब्जा
दोस्तों, 1948 के युद्ध के बाद शांति तो नहीं आई, बल्कि तनाव बढ़ता ही गया। फिर आया साल 1967, जब अरब देशों और इज़राइल के बीच एक और भीषण युद्ध छिड़ गया, जिसे 'छह दिवसीय युद्ध' के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध बहुत ही कम समय में खत्म हो गया, लेकिन इसके नतीजे बेहद दूरगामी थे। इस युद्ध में इज़राइल ने न केवल मिस्र से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, सीरिया से गोलान की पहाड़ियों, और जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलेम पर कब्जा कर लिया।
गाजा पट्टी अब इजरायली सैन्य कब्जे के अधीन आ गई। इस कब्जे का मतलब था कि इज़राइल का सैन्य नियंत्रण गाजा पर था, हालाँकि यह औपचारिक रूप से मिस्र का हिस्सा था। इस कब्जे ने फिलिस्तीनियों के जीवन को और भी मुश्किल बना दिया। उन्हें नई पाबंदियों का सामना करना पड़ा, उनकी ज़मीनों का इस्तेमाल इजरायली बस्तियों के निर्माण के लिए किया जाने लगा, और उनका आवागमन भी सीमित कर दिया गया। यह फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद के उदय का भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।PLO (Palestine Liberation Organization) जैसी संस्थाएं इसी दौर में मजबूत हुईं, जिन्होंने फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों और एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग को लेकर संघर्ष तेज कर दिया। 1967 का युद्ध सिर्फ एक सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि इसने पूरे मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक नक्शे को बदल दिया और इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को एक नया और अधिक जटिल आयाम दिया। इस युद्ध के बाद से, गाजा पट्टी की स्थिति लगातार नाजुक बनी हुई है, और यह इजरायली कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनी प्रतिरोध का एक प्रमुख केंद्र बन गया।**
पहला इंतिफादा और गाजा की भूमिका
याद है मैंने कहा था कि 1967 के युद्ध ने सब कुछ बदल दिया? तो गाइज़, उस बदलाव का एक बड़ा असर 'पहला इंतिफादा' (Intifada) था, जो 1987 में शुरू हुआ। इंतिफादा, जिसका मतलब होता है 'जागृति' या 'उठ खड़ा होना', फिलिस्तीनी लोगों का इज़रायली कब्जे के खिलाफ एक व्यापक जन विद्रोह था। गाजा पट्टी इस विद्रोह का एक प्रमुख केंद्र थी। आप सोचिए, वर्षों के कब्जे, पाबंदियों, और निराशा के बाद, फिलिस्तीनी लोग, खासकर युवा, सड़कों पर उतर आए।
यह कोई संगठित सैन्य विद्रोह नहीं था, बल्कि पत्थरबाजी, हड़तालें, और बहिष्कार जैसे तरीकों से विरोध किया गया। बच्चों और युवाओं ने इजरायली सैनिकों पर पत्थर फेंके, जो उस समय की एक पहचान बन गई थी। इजरायली सेना ने इसका जवाब बलपूर्वक दिया, जिससे काफी हिंसा हुई और दोनों तरफ जानें गईं। इस इंतिफादा ने दुनिया का ध्यान फिलिस्तीनी मुद्दे की ओर खींचा और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर इज़राइल पर दबाव बनाने के लिए प्रेरित किया। गाजा में, इंतिफादा ने फिलिस्तीनी समाज को एकजुट करने में मदद की और हमास (Hamas) जैसे इस्लामी समूहों के उदय के लिए भी रास्ता बनाया, जिन्होंने पारंपरिक PLO के मुकाबले अधिक कट्टरपंथी रुख अपनाया। पहले इंतिफादा ने यह साबित कर दिया कि फिलिस्तीनी लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ने को तैयार हैं, भले ही इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़े। यह संघर्ष का एक ऐसा दौर था जिसने शांति की संभावनाओं को जन्म दिया, लेकिन साथ ही भविष्य के और भी जटिल टकरावों की पटकथा भी लिख दी।**
ओस्लो समझौते और भंग होती शांति
दोस्तों, इंतिफादा के बाद दुनिया को लगने लगा कि शायद अब शांति की कोई किरण दिखेगी। और फिर आया 1993 का ओस्लो समझौता (Oslo Accords)। यह इज़राइल और PLO के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था, जिसके तहत दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को मान्यता दी और फिलिस्तीनी स्वायत्तता (Palestinian autonomy) की दिशा में एक कदम बढ़ाया गया। इस समझौते के तहत, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी प्राधिकरण (Palestinian Authority - PA) का गठन किया गया, जिसे सीमित स्वशासन का अधिकार मिला।
गाजा पट्टी को इस समझौते में खास जगह मिली, क्योंकि इसे फिलिस्तीनी प्राधिकरण के नियंत्रण में आने वाले प्रमुख क्षेत्रों में से एक माना गया। उम्मीद थी कि यह समझौता अंततः एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा। शांति की उम्मीदें उस समय बहुत ज़्यादा थीं, और ऐसा लग रहा था कि दशकों के संघर्ष का अंत करीब है। हालांकि, यह खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई। समझौते के लागू होने में कई बाधाएं आईं। दोनों तरफ के कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया। इजरायल में, यित्ज़ाक राबिन (Yitzhak Rabin), जो इस समझौते के प्रमुख वास्तुकारों में से एक थे, की हत्या कर दी गई। फिलिस्तीनी पक्ष में, हमास जैसे समूह ओस्लो प्रक्रिया के खिलाफ थे और उन्होंने आत्मघाती हमलों को जारी रखा।**
गाजा में, ओस्लो समझौते के बाद भी इजरायली सेना की उपस्थिति बनी रही, और बस्तियों का निर्माण भी पूरी तरह से नहीं रुका। धीरे-धीरे, विश्वास कम होता गया और 2000 में 'दूसरा इंतिफादा' (Second Intifada) शुरू हो गया, जिसने ओस्लो प्रक्रिया को लगभग समाप्त कर दिया। ओस्लो समझौते, जो शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थे, अंततः इन चुनौतियों और विश्वास की कमी के कारण बुरी तरह विफल हो गए, और गाजा की स्थिति फिर से तनावपूर्ण हो गई।**
हमास का उदय और गाजा से इजरायली वापसी
गाइज, 2000 के दशक की शुरुआत में चीजें और भी पेचीदा हो गईं। दूसरे इंतिफादा के बाद, गाजा पट्टी की राजनीतिक तस्वीर में एक बड़ा बदलाव आया। 2005 में, इज़राइल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिकों और बस्तियों को एकतरफा रूप से वापस बुला लिया। इसे एक बड़ी जीत के रूप में देखा गया, लेकिन इसने नई समस्याएं खड़ी कर दीं। इज़राइल ने गाजा की सीमाओं, हवाई क्षेत्र और समुद्री मार्ग पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा, जिसे 'नाकाबंदी' (Blockade) कहा गया।
इसी बीच, हमास का प्रभाव बढ़ता गया। 2006 में हुए फिलिस्तीनी विधायी चुनावों में हमास ने अप्रत्याशित रूप से जीत हासिल की। इसके बाद, फिलिस्तीनी प्राधिकरण के भीतर एक आंतरिक संघर्ष हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 2007 में हमास ने गाजा पट्टी पर पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया। फतह (Fateh), जो PA का नेतृत्व करती थी, वेस्ट बैंक तक सीमित रह गई। गाजा में हमास के सत्ता में आने के बाद, इज़राइल और मिस्र ने गाजा की नाकाबंदी को और कड़ा कर दिया, जिससे वहां की मानवीय स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई।**
इस नाकाबंदी और हमास के नियंत्रण के कारण, इज़राइल और हमास के बीच कई सैन्य टकराव हुए हैं, जिनमें 2008-09, 2012, 2014, और 2021 के युद्ध प्रमुख हैं। इन युद्धों में गाजा पट्टी में भारी तबाही हुई है, हजारों लोग मारे गए हैं, और बुनियादी ढांचा नष्ट हो गया है। हमास का उदय और उसका गाजा पर नियंत्रण, इज़राइल के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती बन गया, जबकि गाजा के निवासियों के लिए यह नाकाबंदी और अलगाव का दौर साबित हुआ। यह स्थिति आज भी जारी है, और गाजा एक बार फिर से अस्थिरता और हिंसा का केंद्र बना हुआ है।**
वर्तमान स्थिति और भविष्य की राह
तो दोस्तों, हम आज के समय में आ गए हैं। इज़राइल और गाजा के बीच का संघर्ष आज भी जारी है, और इसकी स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है। 2007 से हमास के गाजा पर नियंत्रण के बाद से, इज़राइल ने एक कड़ी नाकाबंदी लागू कर रखी है। इस नाकाबंदी के कारण गाजा पट्टी में मानवीय संकट गहरा गया है। बिजली, पानी, दवाएं, और निर्माण सामग्री जैसी बुनियादी जरूरतों की कमी लगातार बनी रहती है। लगभग 20 लाख से अधिक लोग एक छोटी सी पट्टी में फंसे हुए हैं, जहाँ उनके पास आने-जाने की आजादी नहीं है।
गाजा से हमास और अन्य उग्रवादी समूह अक्सर इज़राइल पर रॉकेट हमले करते हैं, जिसका जवाब इज़राइल सैन्य कार्रवाई से देता है। ये हमले, चाहे कितने भी छोटे क्यों न हों, इज़राइल के लिए एक सुरक्षा चिंता बने हुए हैं। वहीं, इज़राइल की जवाबी कार्रवाई में गाजा में भारी जान-माल का नुकसान होता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय लगातार शांति की अपील करता रहा है, लेकिन समस्या का कोई स्थायी समाधान निकलता नहीं दिख रहा। दो-राज्य समाधान (Two-state solution), यानी इज़राइल के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना, अभी भी सबसे स्वीकृत समाधान माना जाता है, लेकिन इसे साकार करने की राह चट्टानों से भरी है।**
नेतृत्व में विभाजन (वेस्ट बैंक में PA और गाजा में हमास) और दोनों पक्षों के बीच विश्वास की भारी कमी इसे और भी मुश्किल बना देती है। इज़राइल अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है, जबकि फिलिस्तीनी अपनी आजादी और आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग कर रहे हैं। गाजा के लोग सबसे ज्यादा पीड़ित हैं, जो लगातार हिंसा, गरीबी, और निराशा के चक्र में फंसे हुए हैं। भविष्य में क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। क्या कोई नई शांति प्रक्रिया शुरू हो पाएगी? क्या दोनों पक्ष बातचीत की मेज पर आएंगे? या यह संघर्ष इसी तरह अनिश्चित काल तक चलता रहेगा? ये सवाल आज भी अनुत्तरित हैं, और गाजा पट्टी मानवीय पीड़ा और राजनीतिक अस्थिरता का प्रतीक बनी हुई है।**
यह थी दोस्तों, इज़राइल और गाजा के बीच के जटिल और दुखद संघर्ष की एक कहानी। उम्मीद है कि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी होगी। मिलते हैं अगली बार!
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